आज कल से इस तनाव ग्रस्त जीवन में जहाँ हम सुबह से शाम तक अपने अस्तित्व की कठोर लड़ाई में लिप्त रहते हैं, पूजा पाठ, ध्यान धारणा आदि के लिए समय मिलना कठिन हो जाता है| चौबीसों घंटे आज का मानव सिर्फ और सिर्फ कमाने की चिंता में लगा रहता है| प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता, आगे और आगे बढ़ने की होड़ ने आज हमें एक मशीनी मानव बना दिया है जिसके पास ध्यान, धारणा, धर्म और जप ताप के कोई समय नहीं रह गया है| ऐसे में सांसारिक कष्टों व पापों से निदान का सरलतम “अष्टाक्षर मंत्र” है – Kaliyuga Maha Mantra.
जिस युग में हम जी रहे हैं उसे “कलियुग” से जाना जाता है| इस युग की इस जीवन शैली को हमारे पुराणों और शास्त्रों ने पहले से ही वर्णित कर रखा है| कलियुग में जब धर्म और मानवीय मूल्यों का पतन अपने चरम बिंदु पर पहुँच रहा है, इससे निवारण के लिए भी इन्ही पुराणों और शास्त्रों में कुछ बहुत ही सरल अद्भुत उपाय भी दिए हैं, जिन्हें करके कलियुग के सांसारिक कष्टों से निवारण भी पाया जा सकता है |
Kaliyuga Maha Mantra
एक ऐसा उद्धरण “नरसिंह पुराण” के सत्रहवें अध्याय में दिया गया है जहाँ श्री शुकदेव जी अपने पिता महर्षि वेदव्यास से सभी मन्त्रों में उत्तम तथा सर्व पापों से मुक्त करने वाले Kaliyuga Maha Mantra के बारे में पूछते हैं, वही संवाद नीचे उद्धृत है:
श्री शुक उवाच:
किं जपन् मुच्यते तात सततं विष्णुतत्परः | संसारदुःखात् सर्वेषां हिताय वद मे पितः ||
अर्थात: श्री शुक बोले – हे तात, मनुष्य सदा भगवान विष्णु के भजन मे तत्पर रह कर किस मन्त्र के जाप से सांसारिक कष्टों से मुक्त होता है? यह मुझे बताइये, इससे सब लोगों का हित होगा|
व्यास उवाचः
अष्टाक्षरं प्रवक्ष्यामि मन्त्राणां मन्त्रमुत्तमम् | यं जपन् मुच्यते मर्त्यो जन्मसंसारबन्धनात् || हृत्पुण्डरीकमध्यस्थं शङ्खचक्रगदाधम् | एकाग्रमनसा ध्यात्वा विष्णुं कुर्याजपं द्विजः ||
अर्थात: श्री व्यास जी बोले – बेटा, मैं तुम्हे सभी मन्त्रों में उत्तम अष्टाक्षर मन्त्र बताता हूँ जिसका जप करने वाला मनुष्य जन्म मृत्यु से युक्त संसाररुपी बंधन से मुक्त हो जाता है|
द्विज (जातक) को चाहिए की अपने हृदय कमल के मध्य भाग में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान् विष्णु का एकाग्रचित्त से ध्यान करते हुए जप करे|
एकान्ते निर्जनस्थाने विष्णवग्रे वा जलान्तिके | जपेदष्टाक्षरम मन्त्रं चित्ते विष्णुं निधाय वै ||
एकांत जनशून्य स्थान में, श्री विष्णु मूर्ती के सम्मुख अथवा जलाशय के निकट मन में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए अष्टाक्षर मन्त्र का जाप करना चाहिए|
अष्टाक्षर मन्त्रस्य ऋषिर्नारायणः स्वयम् | छन्दश्च दैवी गायत्री परमात्मा च देवता ||
शुक्लवर्णं च ॐकारं नकारं रक्तमुच्यते | मोकारं वर्णतः कृष्णं नाकारं रक्तमुच्यते ||
राकारं कुङ्गुमाभं तु यकारं पीतमुच्यते | णाकारमञ्जनाभं तु यकारं बहुवर्णकम् ||
साक्षात भगवान् नारायण ही अष्टाक्षर मन्त्र के ऋषि हैं, देवी गायत्री छंद हैं, परमात्मा देवता हैं, “ॐ” कार शुक्ल वर्ण है, “न” रक्तवर्ण है, “मो” कृष्ण वर्ण है, “ना” रक्त है, “रा” कुङ्ग्कुं रंग का है, “य” पीत वर्ण का है, “णा” अञ्जन के समान कृष्ण वर्ण वाला है और “य” विविध वर्णों युक्त है|
ॐ नमो नारायणेति मन्त्रः सर्वार्थसाधकः| भक्तानां जपतां तात स्वर्गमोक्षफ़लप्रद: | वेदानां प्रणवेनैष सिद्धो मन्त्रः सनातनः ||
तात, ये ‘ॐ नमो नारायणाय’ मन्त्र समस्त प्रयोजनों का साधक है और भक्ति पूर्वक जप करने वाले लोगों को स्वर्ग तथा मोक्ष रूप फल देने वाला है| ये सनातन मन्त्र वेदों के प्रणव (सारभूत अक्षरों) – से सिद्ध होता है|
सर्वपापहरः श्रीमान सर्वमन्त्रेषु चोत्तमः | एनमष्टाक्षरं मन्त्रं जपन्नारायणम स्मरेत ||
संध्यावसाने सततं सर्वपापैः प्रमुच्यते | एष एव परो मन्त्र एष एव परं तपः ||
एष एव परो मोक्ष एष स्वर्ग उदाहतः | सर्ववेदरहस्येभ्यः सार एष समुद्ध्रतः ||
विष्णुना वैष्णवानां हि हिताय मनुजां पुरा | एवं ज्ञात्वा ततो विप्रो ह्यष्टाक्षरमिमं स्मरेत ||
यह सभी मन्त्रों में उत्तम, श्री संपन्न और सम्पूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है| जो सदा संध्या के अन्त में इस अष्टाक्षर मंत्र का जप करता हुआ भगवान नारायण का स्मरण करता है, वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है | यही उत्तम मंत्र है और यही उत्तम तपस्या है | यही उत्तम मोक्ष तथा यही स्वर्ग कहा गया है | पूर्वकाल में भगवान विष्णु ने वैष्णव जनों के हित के लिए सम्पूर्ण वेद रहस्यों से यह सारभूत मन्त्र निकाला है | इस प्रकार जानकार ब्राह्मण (जातक) को चाहिए की इस अष्टाक्षर मन्त्र का स्मरण (जप) करे |
स्नात्वाः शुचिः शुचौ देशे जपेत पापविशुद्धये | जपे दाने च होमे च गमने ध्यानपर्वसु ||
जपेन्नारायणं मन्त्रं कर्मपूर्वे परे तथा | जपेत्सहस्रं नियुतं शुचिर्भूत्वा समाहितः ||
मासि मासि तु द्वादश्याम् विष्णुभक्तो द्विजोत्तमः | स्नात्वा शुचिर्जपेद्यस्तु नमो नारायणं शतम् ||
स गच्छेत परमं देवं नारायणमनामयम् | गन्धपुष्पादिभिर्विष्णुमनेनाराध्य यो जपेत ||
महापातकयुक्तोऽपि मुच्यते नात्र संशयः | हृदि कृत्वा हरिं देवं मन्त्रमेनं तु यो जपेत् ||
सर्वपापविशुद्धात्मा स गच्छेत परमां गतिं ||
स्नान करके, पवित्र होकर, शुद्ध स्थान पर बैठ कर पापशुद्धि के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए | जप, दान, होम, गमन, ध्यान तथा पर्व के अवसर पर और किसी कर्म से पहले तथा पश्चात इस नारायण मन्त्र का जप करना चाहिये | भगवान् विष्णु के भक्तश्रेष्ठ द्विज को चाहिए की वह प्रत्येक मास की द्वादशी तिथि को पवित्र भाव से एकाग्रचित्त होकर सहस्र मन्त्र का जाप करे| स्नान करके पवित्र भाव से जो “ॐ नमो नारायणाय” मन्त्र का 108 बार जप करता है, वह निरामय परमदेव नारायण को प्राप्त करता है | जो इस मंत्र के द्वारा गंध – पुष्प आदि से भगवान् विष्णु की आराधना करके इसका जप करता है, वह महापातक से युक्त होने पर भी, निस्संदेह मुक्त हो जाता है | जो ह्रदय में भवन विष्णु का ध्यान करते हुए इस मन्त्र का जप करता है, वह समस्त पापों से विशुद्धचित्त होकर उत्तम गति को प्राप्त करता है |
Kaliyuga Maha Mantra
तो ये था “नरसिंह पुराण” के सत्रहवें अध्याय में दिया गया सरलतम महामन्त्र – Kaliyuga Maha Mantra जिसे करके महापातक से युक्त होने पर भी कलियुग का प्राणी मुक्त हो जाता है | वैसे भी कलियुग को नाम युग कहा गया है, जहाँ हरिनाम के द्वारा पापमुक्त होकर मनुष्य परमगति को प्राप्त हो सकता है |
इस Kaliyuga Maha Mantra की शक्ति का मैंने स्वयं अनुभव किया है | जब आपका मन अधीर हो, कार्यों में रुकावटें आ रही हो, कुछ भी सही नहीं हो रहा है तो एकाग्रचित्त होकर किसी शांत वातावरण में इस अष्टाक्षरी Kaliyuga Maha Mantra के नित्य जप करके देखिये, अपने आप मार्ग मिल जायेगा|
|| शुभमस्तु ||