Fourth house in Hindi – चतुर्थ ज्योतिष भाव कुंडली का सबसे पवित्र केंद्र भाव माना गया है| कुंडली में यूँ तो चार केंद्र हैं – लग्न, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव – जो कुंडली के pillar माने जाते हैं| इनमे लग्न को कोण माना गया है, सप्तम को अच्छा केंद्र नहीं मानते और दशम को लग्न से भी महत्वपूर्ण कर्म भाव माना है, पर इन सब में सबसे शुद्ध और पवित्र केंद्र चतुर्थ भाव ही है| शायद यही वजह है की ज्योतिष में चतुर्थ भाव का सम्बन्ध माँ से है क्यूंकि ये इतना पवित्र भाव है की उतनी ही पवित्रता के विषय से ही इसका सम्बन्ध हो सकता है|
चतुर्थ भाव को सुख भाव और बंधू भाव भी कहते हैं| मुख्यतः इस भाव से सुख सौभाग्य एवं इसका स्थायित्व वगैरा देखा जाता है| इसे (Fourth house in Hindi) सुख स्थान या permanency of happiness house इसलिए भी कहा गया है की हमारे जीवन में सही मायने में पहला और permanent सुख माँ ही देती है|
चतुर्थ भाव (Fourth house in Hindi) से क्या देखा जाता है?
- माँ
- भूमि
- वाहन
- प्रसन्नता
- घर का वातावरण
- माँ से पारस्परिक relation
- घर का सुख और आराम
- निवास स्थान
- पैतृक घर
- अचल संपत्ति – मवेशी
- घरेलू सुख
- जन साधारण (masses or public)
- बुनियादी शिक्षा
- संसद (parliament)
आधुनिक समय में कारखाने factories, studios और सामाजिक संस्थान (philanthropic institutions) आदि भी चतुर्थ ज्योतिष भाव(Fourth house in Hindi) से देखे जातें हैं|
Physically चतुर्थ ज्योतिष भाव (Fourth house in Hindi) छाती या वक्षस्थल, ह्रदय और फेफड़ों को represent करता है| Natural zodiac यानि कालपुरुष राशिचक्र में चतुर्थ भाव कर्क राशि है जिसके स्वामी चन्द्र हैं जो अपने मन, मस्तिष्क एवं happiness के कारकत्व को यहाँ फलीभूत करते हैं| शास्त्र कहतें हैं “चंद्रमा मनस्सोजातः” यानि चन्द्र ही मन है| चंद्रमा, शुक्र, बुध एवं मंगल चतुर्थ भाव के कारक हैं|
चतुर्थ ज्योतिष भाव (Fourth house in Hindi) बहुत ही सशक्त केंद्र (Quadrant) है और ये पहला मोक्षकोण (Salvation Trine) है| ये भाव कुंडली का मुख्य स्तम्भ है और शुभ ग्रह चन्द्र और शुक्र को यहाँ दिशात्मक बल मिलता है और ये ग्रह यहाँ ये अच्छे माने गये हैं |
पूर्व पुण्य का भाव है पंचम भाव
पंचम ज्योतिष भाव को पुत्र भाव और पूर्व पुण्य भाव के नाम से भी जाना जाता है| शास्त्रों के के अनुसार आत्मा पंचम भाव से प्रवेश करती है, लग्न में शरीर प्राप्त कर दशम भाव से कर्म कर नवम भाव से प्रस्थान करती है| इस जन्म के कर्मफल भोगने के लिए पंचम भाव तथा पंचमेश का सुदृढ होना बहुत जरूरी होता है| इस जीवन की सफलता और विफलता के बीज पंचम भाव में है| जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि पंचम भाव और पंचमेश की स्थिति पर निर्भर करती है| पंचमेश की लग्न में उपस्थिति directly पिछले जन्म से जुडी है मतलब पूर्व जन्म के बाद बिना किसी अंतराल के सीधा ये जन्म मिला है|
पंचम भाव से क्या देखते हैं?
- शिक्षा और ज्ञान
- विद्वत्ता
- Intelligence
- बुद्धि एवं इसका झुकाव
- बच्चे
- पूर्व पुण्य (good deeds) तथा पिछले जन्म के कर्म
- सट्टेबाजी
- योग्यता
- शास्त्रों का ज्ञान
- भगवद भक्ति
- वेद
- मन्त्रों का ज्ञान
- सिद्धि एवं अध्यात्म साधना
- Flirtations एवं प्रेम सम्बन्ध
- याददाश्त
- Emotions
- मान मर्यादा और प्रतिष्ठा एवं इससे से गिरना
- व्यवसाय नौकरी में बदलाव या break (दशम से अष्टम भाव की वजह से)
Physically मानव शरीर रचना में पंचम भाव चतुर्थ से अगले हिस्से यानी Liver, पेट एवं तिल्ली spleen को दिखाता है| Liver हमारे शरीर का एक अत्यधिक intelligent और जटिल अंग है जिसका कोई भी अंश या part निकाल लेने पर, अपने आप को दुबारा बढाने grow करने की क्षमता रखता है| Liver हमारे शरीर के विभिन्न जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं chemical processes को नियंत्रित (control) व नियमन (regulate) करता है, और पंचम से सम्बंधित Liver की ये प्रक्रिया पंचम भाव के बुद्धिमता और intelligence के कारकत्व को दर्शाता है| Natural zodiac यानि कालपुरुष राशिचक्र में पंचम भाव सिंह हैं जिसके स्वामी सूर्य हैं| सूर्य को ज्योतिष में आत्मकारक माना गया हैं|
पंचम भाव से संतान को भी देखा जाता है| पुराने जमाने की कुंडलियों में सर्वप्रथम अक्षर जो आपने पढ़ा होगा वो है “पदवी पूर्व पुण्यानाम”, इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है पिता की ये पदवी जो मिली है वो पूर्व पुण्य से मिली है| तो पंचम के पूर्व पुण्य और संतान के कारकत्व को ये एक पंक्ति पूरी तरह से फलीभूत करती है| पंचम भाव दूसरा धर्मकोण (religious conduct Trine) है जिसे दूसरे पणफर (cadent house) के नाम से भी जाना जाता है| एक अच्छा सुद्रढ़ पंचम भाव विवेक, sense of discrimination और गहरा अध्यात्म ज्ञान देता है जो शास्त्रों के अध्ययन और अध्यात्मिक साधनाओं से उपजती है| एक अच्छा पंचम भाव भेदभाव का अच्छा सामर्थ्य देता है| ब्रहस्पति इस भाव के कारक हैं|
रोग ऋण रिपु का भाव है षष्ठ भाव
षष्ठम ज्योतिष भाव को रोग, ऋण, रिपु एवं अरि भाव से भी जाना जाता है| इस भाव को कुडंली का दूसरा दुश्स्थान मानते हैं| कुंडली का सबसे ज्यादा दुश्स्थान अष्टम भाव है| मंगल ग्रह को छोड़ इस भाव में स्थित कोई भी ग्रह दग्ध (burnt) माना जाता है, मंगल यहाँ exception है क्यूंकि यहाँ से मंगल लग्न को दृष्टि देकर उसे बल देता है| प्रायः छठे भाव या इसके स्वामी से सम्बन्ध रखने वाली कोई भी चीज भ्रष्ट होकर अशुभ फल देगी| पर इसके exception भी हैं जिसके लिए कुंडली का पूर्ण एवं सूक्ष्म अध्ययन की जरूरत पड़ती है|
छठे भाव से क्या देखते हैं?
- शत्रु, लड़ाई झगड़े
- विवाद और कानूनी कार्यवाही, legal cases
- क्रूरता
- रोग एवं बीमारी
- accidents, जख्म और चोट
- loans और कर्ज
- नुक्सान
- विरोध
- रुकावटें, मुश्किलें
- दुःख – विपदा
- सजा
- निराशा, अपमान
- मानसिक आवेग
- चिंता एवं परेशानी
- चोरी
- हानि (ग्यारहवें लाभ भाव से अष्टम भाव)
- भय
- प्रतिस्पर्धा
- सेवा भाव
- contracts
- पालतू पशु
- मामा मामी
- सौतेली माँ
- नौकर चाकर
Physically hips और छोटी आंत छठे भाव के अधिकार में आते हैं| Natural zodiac यानि कालपुरुष राशिचक्र में छठा भाव कन्या है जिसके स्वामी बुध हैं| ये दूसरा अर्थकोण (money mattered trine) है जिसे दूसरे अपोक्लिम (succedent) house से भी जाना जाता है| इसे त्रिशढाय भाव या दुश्स्थान भी कहते हैं याने प्रतिकूल और बुरा भाव| मगर इसके सकारात्मक रूप में धन संचय (दुसरे अर्थकोण होने की वजह से), sports तथा adventure activities को भी इसी भाव से देखा जाता है| मंगल और शनि इस भाव के कारक हैं|
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