Durga Navami 2016 दसवां दिन (नवमी तिथि) 10 अक्टूबर 2016 सोमवार – माँ सिद्धिदात्री पूजा|
नवमी तिथि 09 अक्टूबर 2016 रविवार को 22:30 से प्रारम्भ होकर 10 अक्टूबर 2016 सोमवार 22:53 तक रहेगी| इस दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है|
Durga Navami 2016 को ही महानवमी या नवमी पूजन के नाम से भी जानते हैं| इस दिन माँ जगदम्बे की पूजा महिषासुरमर्दिनी के रूप में भी की जाती है| दक्षिण भारत में इस दिन को आयुध पूजा या शस्त्र पूज के रूप में भी मनाते हैं| इन प्रान्तों में बहुधा सरस्वती पूजन भी आयुध पूजा के साथ ही की जाती है|
Durga Navami 2016 को नवमी का हवन (Navami Homa) भी किया जाता है जिसे चंडी हवन (Chandi Homa) या चंडी होमम (Chandi Homam) भी कहते हैं| भारत के कुच्छ प्रान्तों में अष्टमी को ही कुमारी पूजन के साथ ही नवरात्री की समाप्ति कर देते हैं पर कई प्रान्तों में नवमी के दिन कुमारी पूजन के बाद नवरात्री का समापन होता है| जैसा जिस परिवार में चलन है वैसे ही कुमारी पूजन और समापन होता है|
माँ सिद्धिदात्री स्वरुप
जगत जननी माँ जगदम्बे शेरों वाली का नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री का अंतिम स्वरुप है| Durga Navami 2016 में नवरात्र पूजन की अंतिम तिथि नवमी को इनका पूजन किया जाता है| जैसा इनका नाम है वैसे ही ये सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी माँ हैं| इनका वाहन सिंह है पर ये कमलपुष्प पर भी आसीन होती हैं| आद्य शक्ति के इस स्वरुप की चार भुजाएं हैं जिसमे दहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प है|
नवरात्री के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना आराधना और पूर्ण निष्ठा से साधना करने वाले साधक को सिद्धियों की प्राप्ति होती है| माँ दुर्गा के बाकी आठ रूपों पूजा के बाद माँ के इस रूप की उपासना से भक्तों की लौकिक और परलौकिक सभी इच्छाओं की पूर्ती हो जाती है| माँ अपने प्रिय भक्त को इतना दे देती है की कोई कामना शेष ही नहीं रहती, सिर्फ माँ का परम सान्निध्य की कामना ही बची रहती है|
माँ सिद्धिदात्री दिव्य चरित्र
पुराणों के अनुसार भगवान् शिव ने अभीष्ट सिद्धियों की प्राप्ति के लिए देवी की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर माँ सिद्धिदात्री स्वरुप में माँ ने शिव को सभी सिद्धियाँ वरदान में दी| देवी से इन सिद्धियों को प्राप्त करके भगवन शिव का आधा शरीर नारी रूप में बदल गया और शिव का ये अवतार ही “अर्धनारीश्वर” कहलाया|
मार्कण्डेय पुराण में अष्टसिद्धियों का वर्णन है – अणिमा, महिमा गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व| वहीँ ब्रह्मवैवर्त पुराण में अनुसार अठारह सिद्धियाँ बतायीं गयीं हैं – अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायाप्रवेशन, वाकसिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना, सिद्धि| अगर ध्यान से देखें तो इन सिद्धियों के बाद तीन लोकों में प्राप्त करने को कुछ बचता नहीं – सृष्टि, संहार, कल्पवृक्षत्व, अमरत्व – इसके बाद तीन लोकों में बचा क्या!!
इन सिद्धियों की प्राप्ति के लिए सिद्ध पुरुष, यक्ष, गन्धर्व, दैत्य, दानव, देवगण और ज्ञानी सब माँ सिद्धिदात्री के ही शरण में आते हैं |
Durga Navami 2016 के दसवें दिन (नवमी तिथि) माँ सिद्धिदात्री पूजा
वैसे तो देवी महात्यम में, शिवपुराण और शास्त्रों में बहुत से मन्त्र और स्तोत्र हैं पर जैसा की मैं कहता आया हूँ आजकल के इस भाग दौड़ की जिन्दगी में, जहाँ हम लोग समय के पीछे भागते रहते हैं – बहुत लम्बे जाप के लिये समय निकालना मुश्किल हो जाता है| दूसरी अड़चन आती है संस्कृत के उच्चारण की, तो बड़े बड़े स्तोत्र संस्कृत के सही उच्चारण से भाग दौड़ के इस जीवन में पढना मुश्किल हो जाता है| विकल्प के रूप में किसी पंडित या पुरोहित से पूजा करवा लें – ये भी इतना आसान नहीं क्यूंकि इन दिनों में विद्वान् पंडित आसानी से मिलते ही नहीं| वैसे भी अपने जीवन के उत्थान के लिए, अपने जीवन के दुखों को दूर करने के लिए क्यूँ ना हम खुद जगत जननी माँ जगदम्बिके की अराधना करें?
इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैं आज आपको Durga Navami 2016 के माँ सिद्धिदात्री पूजा के कुछ छोटे, आसान पर बहुत ही प्रभावशाली मन्त्र दे रहा हूँ जिसका बताई गयी संख्या में जाप करें और पूजा संपन्न करें|
माँ भगवती का पंचोपचार पूजन करें और माँ सिद्धिदात्री के ऊपर बताये गए रूप का ध्यान करें| अब नौ बार निम्न मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः||
(Om Devi siddhidaatryai Namah)
इसके बाद निम्न मन्त्र का तीन उच्चारण करें:
सिद्ध् गन्धर्व यक्षाध्यैरसुरैरमरैरपि| सैव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धि दायिनि||
(siddh gandharv yakshaa-dhyair-surair-marairapi saivya-maanaa sadaa bhooyaat siddhida siddhi daayini)
फिर निम्न मंत्र का भी तीन उच्चारण करें:
वन्दे वाञ्छित मनोरार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम| कमलस्थिता चतुर्भुजा सिद्धि यशस्विनीम्||
(Vande Vaanchhita manoraarthe Chandrardh-krit-shekharaam
kamala-sthita Chaturbhuja siddhi Yashasvinim)
अब नौ बार निम्न मंत्र पढ़ें:
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता| नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः||
(Yaa devi sarva bhooteshu maa siddhidaatri roopen samsthita namastasyai namastasyai namastasyai namo namah)
पूजा के अंत में जाने अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करें:
मंत्र बोलने में कठिनाई हो तो भाव से क्षमा प्रार्थना करें की हे माँ सिद्धिदात्री रूपेण आद्य शक्ति, हे जगत जननी माँ दुर्गा परमेश्वरी, जाने अनजाने में अगर मुझसे कोई गलती हो गयी हो मुझे क्षमा करें, मेरी पूजा स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें| मुझ पर और मेरे परिवार पर सदा कृपा दृष्टि रखें|
जैसा मैं अपने हर article में कहता हूँ – पूजा या किसी भी भगवत सेवा, पूजा आराधना में भाव सबसे महत्वपूर्ण है, भाव से की जाने वाली पूजा ही देव को सबसे ज्यादा प्रिय है|
उपरोक्त मन्त्र आप यहाँ से Word File में download कर सकते हैं| maa-siddhidatri-mantra
Navratri 2016 ग्यारहवां दिन (दशमी तिथि) 11 अक्टूबर मंगलवार – विजय दशमी, दुर्गा विसर्जन , नवरात्री पारणा|
दशमी तिथि 10 अक्टूबर सोमवार को 22:53 से प्रारम्भ होकर 11 अक्टूबर मंगलवार 22:28 तक रहेगी| नवरात्री पारणा समय 06:23 पश्चात|
दुर्गा विसर्जन समय 06:23 से 08:41 तक है|
उपरोक्त मन्त्रों को आप यहाँ से word फाइल में download कर सकते हैं: maa-siddhidatri-mantra
नवरात्री पारणा
नवरात्री पारणा के सम्बन्ध में हमारे धार्मिक ग्रंथों में अलग मान्यताएं हैं| नवरात्री व्रत समाप्ति के दो अभिप्राय देखने को मिलते हैं – एक मान्यता के अनुसार नवरात्री पारणा नवमी तिथि के अन्दर करनी चाहिए और दूसरी मान्यता के अनुसार नवमी तिथि की समाप्ति के बाद दशमी तिथि को नवरात्री पारणा करनी चाहिए|
उत्तर भारत में साधारणतया परिवारों में माता के श्रद्धालु अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन (Kanya Poojan) के बाद व्रत तोड़ देते हैं| कई बार नवरात्री में अष्टमी और नवमी एक ही तिथि में आ जाते हैं| कई पीढ़ियों से चली आ रही पारिवारिक मान्यताओं के आधार पर अष्टमी या नवमी को कुमारी पूजन (Kumari Pujan) के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है| ऐसे में नवरात्री पारणा मुहूर्त देखने की जरुरत नहीं पड़ती क्यूंकि अष्टमी या नवमी को Kanya Poojan के बाद वैसे ही व्रत समापन हो जाता है|
नवरात्री मतलब है नौ रात| पर उपरोक्त परंपरा में अगर अष्टमी को कन्या पूजन है तो सात रात्रि का व्रत होगा और नवमी को कुमारी पूजन हुआ तो आठ रात्रि का व्रत हुआ| इस परंपरा के मुताबिक नवरात्री व्रत नवमी के अन्दर अन्दर ही तोड़ा दिया जाता है और इस तरह नवरात्री पारणा दशमी तिथि या नवमी दशमी मिश्रित तिथि को परिवर्जित ही हो जाता है|
नवरात्री में पहली और आखिरी दिन के व्रत का भी बहुत चलन है| पहले व्रत पहले दिन और दूसरा व्रत सप्तमी को (अगर अष्टमी में कन्या पूजन कर रहें हों) या अष्टमी को (अगर नवमी में कन्या पूजा कर रहे हों)| इस चलन में भी नवरात्री पारणा देखने की जरुरत नहीं है|
निर्णय सिन्धु के अनुसार नवरात्री पारणा दशमी तिथि को दुर्गा विसर्जन के बाद ही किया जाता है क्यूंकि प्रतिपदा से नवमी तक व्रत रख कर नवरात्री पारणा का विधान है|
विजय दशमी – विजय दशमी को दशहरा (Dussehra या Dasara) भी मनाया जाता है| महिषासुर पर माँ दुर्गा के विजय और रावण पर श्रीराम के विजय के दिवस के रूप में इस दिन को मनाया जाता है|
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