शिव पूजा पूरे विश्व में बहुत अधिक प्रचलित है| शिव लिंग स्नान, शिव पार्वती पूजा और शिव परिवार पूजा आदि तो हम सब बहुधा करते हैं, पर क्या आप जानते हैं शिव के नटराज स्वरुप के अभिषेकम का महत्व? आइये आज Shiva Puja में शिव के नटराज स्वरुप के अभिषेकम की विशेषता के बारे में समझते हैं|
नटराज यानी शिव का तांडव स्वरुप और इस रूप का अर्थ
भगवान शिव के तांडव स्वरुप को नटराज कहा जाता है| शिव का के इस उन्मुक्त ब्रह्मांडीय नृत्य को “आनंद तांडव” (Dance of Bliss) से जाना जाता है| शिव तांडव में प्रकृति का सृजन, पोषण, अभय और संहार सब कुछ का समावेश है|
आज के युग के मशहूर भौतिकवैज्ञानिक Dr. Fritjof Capra के शब्दों में:
सिर्फ पुराणों में ही नहीं, आज के युग के वैज्ञानिक मानते हैं शिव का ये Cosmic Dance वाकई में सृष्टि के उत्पत्ति और संहार का नृत्य है| जिनेवा में विश्व की अद्वितीय शोध केंद्र – CERN, European Center for Research in Particle Physics में शिव के नटराज स्वरुप की मूर्ति : http://www.fritjofcapra.net/shivas-cosmic-dance-at-cern/ के बारे में यहाँ और पढ़िए|
तो आइये आज सबसे पहले शिव के तांडव स्वरुप को समझते हैं| शिव का ये नटराज स्वरुप एक आग्नेय गोल में स्थित हैं जिसे “प्रभा मंडल” कहते हैं| ये ब्रह्माण्ड की वो उर्जा को दर्शित करती है जिससे सब उत्पन्न होता है और जिसमे सब भस्म हो जाता है| ये अग्नि का मंडल उर्जा को, बुराइयों को, उष्णता को और प्रकाश को दर्शाता है| नटराज का निचला सीह्दा हाथ अभय मुद्रा में है जिसमे
उन्मुक्त नृत्य के उत्तंग अवस्था में शिव की जटाएं अन्तरिक्ष में फैली हुई हैं| जटाओं से संसार को पवित्र करने गंगा उफन कर निकल रही है और फिर शांत होकर संसार की भलाई के लिए सौम्य रूप में बह रही हैं|
शिव के इस स्वरुप में चार भुजाएं हैं जिनके ऊपर के दोनों हाथों में संसार की उत्पत्ति और नाश के चिह्न हैं| ऊपर का सीधा हाथ डमरू हस्त है, मतलब डमरू धारण किये हैं जो आदि शब्द और उत्पत्ति का चिह्न है| पुराणों के अनुसार शिवनृत्य के समय डमरू से जो स्वर निकले उसे पाणिनि ऋषि ने आकार दिया और 14 सूत्र बनाये जिससे व्याकरण की उत्पत्ति हुई|
महातपस्वी रावण के “शिवताण्डव स्तोत्रम्” का ये पहला स्तोत्र देखिये इस रूप को कितनी सुन्दरता से रूपित करता है:
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥
Jataa-ttavee-Galaj-Jala-Pravaaha-Paavita-Sthale
Gale-A-valambya Lambitaam Bhujanga-Tunga-Maalikaam |
Ddamadd-Ddamadd-Ddamadd-Ddaman-nninaad-vadd-damar-Vayam
Chakaar Chanda-Taandavam Tanotu Nah Shivah Shivam ||
शिव ताण्डव स्वरुप – वन में बिखरी लताओं की तरह शिव की उलझी हुई विशाल जटाओं से गंगा जी की पवित्र धारा पृथ्वी को पावन कर रही हैं जिस पावन पृथ्वी पर शिव ताण्डव कर रहे हैं|
उनके गले में शानदार उन्नत एवं उन्मुक्त सर्प शोभित हैं जो उन के गले को आलंबन करते हुए पुष्प मालाओं की तरह सुन्दर सुसज्जित हैं|उनका डमरू डमडड डमडड डमडड डमडड की अविरल ध्वनि निकाल रहा है जिसके निनाद से सारा वातावरण उद्घोषित हो रहा है|शिव का ये प्रचंड ताण्डव बहुत ही आवेशपूर्वक और जोशीला है, हे शिव हमारे अन्दर भी इस शुभ ताण्डव का समावेश करें|
नटराज के इस स्वरुप में ऊपर के दूसरे हाथ में नटराज ने अग्नि धारण किया हुआ है जो संहार का प्रतीक है| उत्पत्ति के बाद संहार का कार्य भगवान की ये अग्नि करती है| भगवान का निचला सीधा हाथ अभय मुद्रा में है जो भक्तों को शरण देता है| नटराज की ये अभय मुद्रा शरणागत की अज्ञानता से, बुराइयों से और भय से रक्षा करती है| इस आग्नेय वातावरण में, विषैले सर्पों से युक्त भुजा की जो अभय मुद्रा है वो ये दर्शाती है की अज्ञानता, बुराई और भय सत्य, धर्म और न्याय की शक्ति से रक्षित हैं|
नटराज के इस स्वरुप का निचला बायाँ हाथ नृत्य करते हुए निचले पैर की तरफ झुका है जो ये दर्शाता है की कैसी भी परिस्थितियां हों, सदा कर्म में लीन रहें, active रहें| साथ ही ये मुद्रा उत्थान और मुक्ति का भी सन्देश देती है|
भगवान के इस विराट स्वरुप में तीन नेत्र हैं – सूर्य, चन्द्र दोनों आँखें और तीसरा नेत्र आज्ञा चक्र पर, जिसे ज्ञान चक्षु कहा जाता है| ये तीसरा नेत्र हमें आंतरिक ज्ञान और आत्मबोध का सन्देश देता है|
नटराज का ये cosmic dance एक राक्षस के ऊपर है जो अज्ञानता, तामसिक शक्तियों और बुराई पर विजय का प्रतीक है| इतने आग्नेय वातावरण में और इतने प्रचंड नृत्य स्वरुप में भी भगवन के चेहरे पर मंद मुस्कान है जो विकट परिस्थितियों में, विषम समय में हमें शांति और धीरज का सन्देश देती है|
Shiva Puja में नटराज अभिषेकम का महत्व
वर्ष के कुछ खास समयों पर Shiva Puja में शिव के इस तांडव स्वरुप नटराज का अभिषेकम किया जाता है| ऐसी मान्यता है की इन खास समयों पर Shiva Puja के अवसर पर शिव के अभिषेकम से हमारे जीवन के अनेक नकारात्मक कर्म कटते हैं और शिव की ऊर्जस्वी शक्ति हमें ऐसे कर्मों से निकाल कर उन्नति की ओर ले जाती है|
दक्षिण भारत में ऐसी मान्यता है की हर वर्ष कुछ खास समयों पर Shiva Puja में शिव के इस स्वरुप में नटराज की उर्जा का समावेश होता है| शरद ऋतू के प्रारंभ में, शरद ऋतू के चरम पर, ग्रीष्म ऋतू के प्रारंभ में और ग्रीष्म ऋतू के चरम पर, वर्षा ऋतू तथा हेमंत ऋतू (पतझड़) में नटराज का दूध से, दही से, घी से तथा संतरे के रस से अभिषेक किया जाता है| साल के ये छे समय स्वर्ग की भोर, प्रातः, मध्याह्न काल, अपराह्न काल (दोपहर), सांयकाल एवं रात्रिकाल हैं| इन समयों पर इस अभिषेकम का खास दिन तय किया गया है|
इस दिन Shiva Puja में शिवलिंग को पके हुए चावल से पूरी तरह ढका जाता है| विश्वास है की पके हुए चावल की भरण पोषण और जीवनदायिनी शक्ति शिव की ऊर्जा को शिवलिंग में आवाहित करती है और शिवलिंग प्राणोक्त हो उठता है| (दक्षिण भारत में चावल प्रमुख भोजन यानी staple food है|)
Shiva Puja में नटराज अभिषेकम कब करते हैं?
इस वर्ष 15 अक्टूबर की शुक्ल पूर्णिमा और 14 नवम्बर की शुक्ल पूर्णिमा इस वर्ष के Shiva Puja के नटराज अभिषेकम के आखिरी दिन हैं| Shiva Puja के दौरान दक्षिण भारत के मंदिरों में ये अभिषेकम इस दिन साधारणतया होता है पर भारत के अन्य हिस्सों में इस दिन का ये अभिषेकम इतना प्रचलित नहीं है|
अगर किसी मंदिर में ये अभिषेकम हो रहा हो तो उसमे participate करना अच्छा माना गया है| पर अगर अपने आसपास यदि किसी मंदिर में Shiva Puja में इस तरह का अभिषेकम possible नहीं है तो किसी भी शिवमंदिर में इस दिन पहले दूध फिर शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेकम करना बहुत अच्छा होता है|
Shiva Puja के अभिषेकम के दौरान नटराज स्तुति पढ़ सकते हैं, पर साधारणतया समय की कमी के चलते शायद हरेक के लिए ये possible ना हो| तो चलिए Shiva Puja के इस दिन के लिए आपको आज बहुत ही छोटा बहुत सुन्दर और अति सरल स्तुति दे रहा हूँ, इस स्तुति के साथ इस दिन शिवलिंग अभिषेकम करें और अपने negative कर्मों को कम करें:
नटराजा नटराजा जय शिव शंकर नटराजा | शिवराजा शिवराजा शम्भो शंकर शिवराजा ||
शिव शंकर भोलेनाथ सब पर कृपा करें| ॐ नमः शिवाय||
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