
Ruby gemstone
सूर्य का रत्न माणिक (manik ratn) कौन धारण कर सकता है? एक Astrologer और Gemologist की हैसियत से सबसे ज्यादा आम प्रश्न मुझसे पूछा जाता है की मैं कौन सा रत्न धारण करूँ या कौन सा रत्न मुझे suit करेगा|
जैसा मैंने अपने पहलेवाले इस article में कहा था की मैं हर रत्न को हर लग्न से मिलकर बताऊँगा की कौन से लग्न को कौन सा रत्न सूट करेगा और क्यों, तो इसी series में आइये दोस्तों आज हम सूर्य के रत्न माणिक (manik ratn) की बात करते हैं की प्रत्येक लग्न का सूर्य से क्या सम्बन्ध है और माणिक (manik ratn) धारण कर सकते हैं की नहीं|
सूर्य क्यूंकि एकाधिपति ग्रह हैं जिसका मतलब है एक भाव के स्वामी इसलिए माणिक रत्न निर्धारण थोडा आसान हो जाता है| जब दो भावों का स्वामित्व आता है तब एक भाव शुभ और दूसरा अशुभ हो तो रत्न निर्धारण में काफी सावधानियां लेनी पड़ती है|
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मेष लग्न और माणिक रत्न (manik ratn)
राशी चक्र की पहली राशी है मेष, जिसके स्वामी हैं मंगल| मेष राशी का लग्न हो तो सूर्य के स्वामित्व में पंचम भाव सिंह आयेगा (प्रथम मेष, द्वितीय वृषभ, तृतीय मिथुन, चतुर्थ भाव कर्क और पंचम भाव सिंह) मेष राशी का लग्न है तो लग्नेश हुए मंगल जो नैसर्गिक रूप से सूर्य के मित्र हैं और पंचम भाव जिसके सूर्य स्वामी हैं, सबसे शुभ त्रिकोण भाव है| तो मेष लग्न के लिए माणिक (manik ratn) पहनना अति शुभ है|
सूर्य के पंचमेश होने की वजह से माणिक इस case में जातक को intelligence देगा, मान, प्रतिष्ठा एवं यश में वृद्धि करेगा और अध्यात्मिक प्रगति में सहायता करेगा| संतान के लिए भी यह शुभ होगा| सूर्य के महादशा एवं अंतर दशा में तो यह बहुत ही गुणकारी फल देगा| तो मेष लग्न के जातक बेशक माणिक रत्न (Ruby gemstone) धारण कर सकते हैं|
वृषभ लग्न और माणिक (manik ratn)
राशी चक्र की दूसरी राशी है वृषभ, जो शुक्र के स्वामित्व की पहली राशी है| लग्न भाव वृषभ हुआ तो सूर्य के स्वामित्व में चतुर्थ भाव होगा (लग्न या प्रथम भाव वृषभ, दूसरा भाव मिथुन, तीसरा कर्क तथा चतुर्थ सिंह) चतुर्थ भाव सुख का भाव है और शुभ भाव माना जाता है पर वृषभ लग्न के लग्नेश शुक्र, नैसर्गिक रूप से सूर्य के शत्रु हैं|
इस case में माणिक सिर्फ सूर्य के महादशा या अंतर दशा में पहना जा सकता है क्यूंकि महा दशा का स्वामी शुभ भाव के शुभ फल देगा| वृषभ लग्न में यदि सूर्य दशम भाव में स्थित हो तो भी माणिक (manik ratn) धारण किया जा सकता है क्यूंकि दशम भाव में सूर्य दिग्बली होता है और काफी powerful माना गया है|
वैसे ज्योतिष में द्वितीय और सप्तम भाव शुभ भाव तो माने गए हैं पर साथ ही ये मारक भाव (death inflicting house) भी हैं, खास तौर पर इन भावों के स्वामी की महा दशा या अंतर दशा में| अगर इन भावों के स्वामी लग्नेश में मित्र हों या किसी और तरह से शुभ हों (जैसे पूर्ण योगकारक आदि) तो इनका मारकत्व कम हो जाता है|
Ruby gemstone और मिथुन लग्न
अब बात करते हैं मिथुन लग्न की जो बुध की राशी है| मिथुन लग्न में सूर्य तीसरे घर या भाव के स्वामी बनते हैं और नैसर्गिक रूप से लग्नेश बुध के मित्र हैं| तीसरा भाव ज्योतिष में दुश्स्थान माना गया है, इसे त्रिषढाय और उपचय भाव से भी जाना जाता है| तीसरे भाव के स्वामित्व की वजह से माणिक मिथुन लग्न के लिए उपयुक्त नहीं है| यदि सूर्य तीसरे भाव में ही स्थित हो यानी अपने ही भाव में हो तो सूर्य स्वग्रही हो जाते हैं और सिर्फ इस स्थिति में मिथुन लग्न के लोग सूर्य के महा दशा या अंतर या अंतर दशा में माणिक (manik ratn) पहन सकते हैं|
कर्क लग्न और manik ratn
राशी चक्र की चतुर्थ राशी कर्क राशी है जो चन्द्र की राशी है| चन्द्र भी सूर्य की तरह एकाधिपति ग्रह हैं जिसका मतलब है एक भाव के स्वामी| कर्क लग्न में सूर्य दुसरे भाव के स्वामी बनते हैं (कर्क लग्न या प्रथम भाव और सिंह द्वितीय) नैसर्गिक रूप से चन्द्र सूर्य के मित्र हैं और सूर्य इस लग्न के लिए धन भाव के स्वामी यानी धनेश भी हैं|
कर्क लग्न के जातक बेशक माणिक रत्न (manik ratn) धारण कर सकते हैं| और अगर इस लग्न के जातक माणिक के साथ ही मोती भी जड़वा लें तो सोने पे सुहागा समझिये| Wealth create करने के लिए बहुत बढ़िया combination है ये माणिक मोती सम्मिश्रण|
सिंह लग्न और manik ratn
अब बात करते हैं सूर्य के स्वयं की राशी सिंह की| सिंह लग्न में सूर्य ही लग्नेश हैं| माणिक धारण सिंह लग्न के लिए बहुत ही शुभ है| अगर ये कहा जाये की सिंह लग्न के लिए माणिक अवश्यम्भावी है तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगी क्यूंकि माणिक इस case में आयु के लिये, जीवन के प्रति उत्साह के लिये, अच्छे स्वास्थ्य के लिये और भौतिक रूप से उन्नति और सफलता के लिये अति उत्तम है|
कन्या लग्न और माणिक रत्न
राशीमंडल की छठी राशी है कन्या राशी जो बुध के स्वामित्व की दूसरी राशी है| कन्या लग्न में सूर्य बारहवें भाव के स्वामी हैं| (कन्या प्रथम या लग्न, फिर क्रमशः तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह) हालाँकि लग्नेश बुध सूर्य के मित्र ग्रह हैं पर कन्या लग्न के लिये माणिक रत्न (manik ratn) धारण शुभ नहीं है क्यूंकि लग्न से बारहवां भाव लग्न की समाप्ति का भाव है, मृत्यु भाव है|
इसका एक exception या अपवाद यह है की यदि सूर्य बारहवें भाव में ही स्थित हो तो माणिक धारण किया जा सकता है| सूर्य कन्या लग्न की कुडंली में किसी शुभ भाव में हो तो सूर्य की महा दशा में भी माणिक पहन सकते हैं पर उस case में दुसरे हाथ में एक पन्ना भी ज़रूर पहनें|
तुला लग्न और manik ratn
अब बात करते हैं तुला राशि की जो राशि चक्र की सातवीं राशी है| तुला शुक्र के स्वामित्व की दूसरी राशि है| तुला लग्न में सूर्य लाभेश होते हैं यानी ग्यारहवें भाव, लाभ भाव के स्वामी| (तुला प्रथम भाव या लग्न फिर क्रमशः वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह यानी ग्यारहवां भाव)
हालाँकि इस case में सूर्य लग्नेश शुक्र के शत्रु ग्रह हैं फिर भी माणिक तुला लग्न के लिए बहुत अच्छा माना गया है| वास्तव में ग्यारहवें भाव में हर ग्रह अच्छा फल देता है, दशम भाव से हम जो कर्म करते हैं उसका फल और जीवन में किसी भी तरह का लाभ या बिना मेहनत की कमाई, लाभ भाव से ही मिलती है| और अगर सूर्य कहीं ग्यारहवें भाव में ही स्थित हो तो माणिक बहुत ही बढ़िया फल देगा| ऐसे कुंडली में माणिक रत्न धारण जातक को दीर्घायु, अच्छा स्वास्थ्य, नाम, शोहरत और धन सम्पदा प्रदान करता है|
वैसे ज्योतिष में द्वितीय और सप्तम भाव शुभ भाव तो माने गए हैं पर साथ ही ये मारक भाव (death inflicting house) भी हैं, खास तौर पर इन भावों के स्वामी की महा दशा या अंतर दशा में| अगर इन भावों के स्वामी लग्नेश में मित्र हों या किसी और तरह से शुभ हों (जैसे पूर्ण योगकारक आदि) तो इनका मारकत्व कम हो जाता है|
वृश्चिक लग्न और माणिक
अगली राशी है वृश्चिक जो राशीमंडल की आठवीं राशी है| वृश्चिक मंगल के स्वामित्व की दूसरी राशि है| वृश्चिक लग्न में सूर्य कुडंली के सबसे सक्रिय भाव – कर्म भाव यानी दशम भाव के स्वामी बनते हैं| (वृश्चिक प्रथम भाव या लग्न, फिर क्रमशः धनु, मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह)
इस case में एक तो सूर्य महत्वपूर्ण भाव दशम भाव के स्वामी हैं और फिर लग्नेश के मित्र, बिलकुल सोने पे सुहागा! वृश्चिक लग्न में माणिक धारण जातक को अच्छा व्यवसाय, सरकारी नौकरी, शोहरत, व्यावसायिक उन्नति और अधिकार देने में सक्षम होता है| और अगर सूर्य दशम भाव में ही हों तो बहुत शक्तिशाली माने गए हैं क्यूंकि सूर्य को दशम भाव में पूर्ण दिग्बल (directional strength) मिलता है और ऐसे case में माणिक राजनीति के क्षेत्र में जातक को बहुत सफलता दे सकता है|
धनु लग्न और manik ratn
वृश्चिक के बाद आती है धनु राशी जो राशिचक्र की नौवीं राशी है| धनु ब्रहस्पति के स्वामित्व की पहली राशी है| धनु लग्न में सूर्य भाग्येश यानी नौवें भाव, भाग्य भाव के स्वामी बनते हैं| (लग्न भाव धनु, फिर क्रमशः मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह)
ब्रहस्पति ज्योतिष में सबसे उदार और शुभ ग्रह हैं जो जीवन में हर तरह की उन्नति, धन, नाम और यश, status और सौभाग्य आदि के कारक हैं और लग्नेश होते हुए सूर्य के मित्र हैं| इस case में माणिक धारण अति शुभ है और अगर सूर्य इसी भाव में स्थित हो तो और भी अच्छा, भाग्य खुल कर साथ देगा| माणिक (manik ratn) धारण जातक को नाम, यश, अधिकार एवं status, और अध्यात्म के प्रति झुकाव आदि देता है|
मकर लग्न और gemstone Ruby
अगली राशी है मकर जो शनि के स्वामित्व के पहली राशी और राशी चक्र की दशम राशी है| मकर लग्न में सूर्य अष्टम भाव के स्वामी बनते हैं| (मकर लग्न भाव, फिर क्रमशः कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह)
अष्टम भाव को ज्योतिष में बहुत अशुभ भाव माना गया है| ये एक दुषस्थान है जिसे कुडंली का black hole कहते हैं| अष्टम या अष्टमेश से सम्बंधित हर चीज़ अशुभ फल देती है| मकर लग्न के स्वामी शनि सूर्य के शत्रु ग्रह हैं और दुषस्थान होने के कारण इस case में माणिक रत्न धारण (manik ratn) अशुभ फल देगा इसलिए मकर लग्न को माणिक धारण नहीं करना चाहिए|
इसमें exception या अपवाद ये है की सूर्य यदि अष्टम भाव में ही स्थित हों तो सूर्य के महादशा या अंतर दशा में माणिक (manik ratn) धारण किया जा सकता है| सूर्य को एकाधिपति होने की वजह से अष्टम भाव का दोष नहीं लगता है|
कुम्भ लग्न और Ruby stone
शनि के स्वामित्व की अगली राशी है कुम्भ राशी जो राशी चक्र की ग्यारहवीं राशी है| कुम्भ लग्न में सूर्य सप्तम भाव के स्वामी बनते हैं| (लग्न भाव कुम्भ, फिर क्रमशः मीन, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह)
इस case में सूर्य के स्वामित्व का भाव तो शुभ है पर शनि चूंकि लग्नेश हैं और सूर्य के शत्रु हैं इसलिए माणिक (manik ratn) धारण अशुभ फल देगा| सप्तम भाव कलत्र भाव भी है जो विवाह से सम्बंधित भाव है और सूर्य इस इस भाव में विभेदनकारी माने गए हैं| सूर्य अगर सप्तम में हैं तो सूर्य की महादशा में माणिक रत्न धारण जातक को पदोन्नति, नाम यश आदि तो दे सकता है पर साथ ही विवाह में problems भी दे सकता है इसीलिए इस case में कुडंली के गहन अध्ययन के बाद ही माणिक धारण करना चाहिए|
मीन लग्न और माणिक
राशी चक्र की आखिरी राशी यानी बारहवां भाव है मीन राशी जो ब्रहस्पति के स्वामित्व की दूसरी राशी है| मीन लग्न में सूर्य छठे भाव के स्वामी होते हैं| (मीन लग्न भाव, फिर क्रमशः मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क और सिंह)
इस case में हालाँकि लग्नेश ब्रहस्पति सूर्य के मित्र ग्रह तो हैं पर यहाँ सूर्य के स्वामित्व का भाव दुषस्थान है| ज्योतिष में छठे भाव को रोग, ऋण और रिपु का भाव कहा गया है और ऐसे भाव का स्वामी अशुभ फल ही देता है| इसलिए मीन लग्न के जातक को माणिक रत्न (manik ratn) नहीं धारण करना चाहिए|
इसमें exception या अपवाद ये है की सूर्य यदि छठे भाव में ही स्थित हो तो सूर्य के महा दशा या अंतर दशा में माणिक रत्न धारण कर सकते हैं क्यूंकि सूर्य यहाँ जातक को competitive spirit देता है|
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