इस वर्ष की Shivratri Puja बहुत ही खास है| यूँ तो हर साल शिवरात्रि खास होती है पर कुछ वर्ष ये बहुत खास होती है| हिन्दू calendar के अनुसार माघ / फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि महाशिवरात्रि होती है|
सूर्य के अस्त होने के समय या इसके पश्चात त्रयोदशी तिथि समाप्त हो जाये और चतुर्दशी तिथि प्रारंभ हो कर पूरी रात रहे तथा अगले पूरे दिन सूर्यास्त तक चतुर्दशी तिथि रहे तो ये उत्तम महाशिवरात्रि है|
इस वर्ष 24 फरवरी को चतुर्दशी तिथि सूर्यास्त के पश्चात 21:38 को शुरू होकर अगले पूरे दिन यानी 25 फरवरी को सूर्यास्त के पश्चात 21:20 को समाप्त होगी| अब 2016 की शिवरात्रि देखिये| महाशिवरात्रि 2016 में चतुर्दशी तिथि 7 मार्च 2016 को मध्याह्न 13:20 से शुरू हुई थी और 8 मार्च 2016 को सुबह 10:34 पर समाप्त हुई थी|
अब जरा 2015 की महाशिवरात्रि भी देखें| 2015 की महाशिवरात्रि में चतुर्दशी तिथि 17 फरवरी को 12:36 पर प्रारंभ होकर 18 फरवरी को सुबह 09:03 पर समाप्त हो गयी थी| तो इस वर्ष की महाशिवरात्रि कितनी खास है, ये तो आप जान ही गए होंगे|
शास्त्रों के अनुसार कलियुग में सरल मोक्ष प्राप्ति के चार मार्ग हैं – शिवार्चना, रूद्र पारायण, शिवरात्रि व्रत एवं काशी में मृत्यु को प्राप्त होना| इन चारों मार्गों में अति उत्तम मार्ग है महाशिवरात्रि व्रत| और शिवरात्रि व्रत में भी अत्युत्तम है ऐसी उत्तम महाशिवरात्रि अनुष्ठान|
Mahashivratri क्यों मनाया जाता है?
महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कई मान्यताएं हैं| एक मान्यता के अनुसार एक बार पार्वती देवी ने मजाक में शिव भगवन की दोनों आँखें अपने हाथों से ढक दिया| परिणाम स्वरुप पूरे संसार में घनघोर अंधकार मच गया और समस्त जीव जंतु भयाकुल हो गए| तब शिव के ही अवतार रूद्र के नेतृत्व में 11 करोड़ रुद्रों ने शिवार्चना कर संसार को राहत दी| इसके बाद ही महाशिवरात्रि का प्रारंभ हुआ|
एक और मान्यता के अनुसार देवासुरों के समुद्र मंथन के समय जब समस्त सृष्टि को जलाकर विध्वंस करने वाला हलाहल विष उद्भव हुआ, तब सृष्टि को बचाने के लिए शिव ने उस विष को पी लिया| विष को पी कर शिव उन्मुक्त होकर संध्या तांडव करने लगे| चतुर्दशी तिथि की उस रात चारों याम समस्त देवगण शिव की स्तुति अर्चना आराधना करने लगे| और इस तरह शिव शांत हुए| तब से महाशिवरात्रि का प्रारंभ हुआ|
ऐसी भी मान्यता है की इसी दिन पुरुष और प्रकृति – यानी शिव-पार्वती का सम्मिलन इनके विवाह के रूप में हुआ था| शिवभक्त इसी दिन को शिव और शक्ति के विवाह की वर्षगाँठ के रूप में मनाते हैं|
महाशिवरात्रि व्रत
महाशिवरात्रि को व्रत की परंपरा अति प्राचीन है| देश काल पात्र के अनुसार इसमें अब काफी परिवर्तन भी आ गए हैं| शास्त्रोक्त रूप में व्रत अनुष्ठान और औपचारिक पूजा अब दुर्लभ ही कोई कर पाता है| प्रचलित विधि जो धर्मग्रंथों में कलियुग के लिए बताई गयी है वो इस तरह है|
- महाशिवरात्रि के एक दिन पहले यानी त्रयोदशी को दिन में एक भोजन लिया जाता है, ताकि व्रत के दिन कोई अपच्य खाद्य पाचन तंत्र में ना रहे|
- Shivratri Puja के दिन सुबह जल्दी उठ आकर स्नान किया जाता है| स्नान के जल में थोडा काला तिल / गंगाजल मिलाया जाता है|
- स्नान के बाद Shivratri Puja व्रत का संकल्प लिया जाता है| शिव भगवन से प्रार्थना की जाती है की व्रत अनुष्ठान निर्विघ्न संपन्न हो और अगले दिन ही अन्न ग्रहण किया जाये|
- Shivratri Puja के दिन दूध या फलाहार लिया जा सकता है पर रात्रि के समय निष्ठा से व्रत किया जाता है| व्रत के दौरान हर समय मन में शिव पंचाक्षरी “ॐ नमः शिवाय” महामंत्र का जाप करते रहें|
- सुबह शिव मंदिर में जा कर दूध और जल से शिवलिंग अभिषेकम किया जाता है और बिल्वपत्र, बिल्व फल और धतूरा आदि अर्पण किया जाता है|
- सांयकाल में दूसरा स्नान किया जाता है और मंदिरों में जाकर दर्शन पूजा अर्चना आदि किया जाता है| घर पर मिटटी का शिवलिंग बना कर अभिषेक की भी मान्यत है| शिव पूजा रात्रि के समय होती है| shivratri पूजा किसी एक प्रहर में या जिससे हो सके, चारों प्रहर में किया जाता है|
- साधारणतय मध्य रात्रि को Shivratri Puja किया जाता है| यथाशक्ति विभिन्न सामग्री जैसे दूध से, गुलाब जल से, चन्दन paste से, दही शहद घी और शक्कर आदि से अभिषेक किया जाता है|
- अभिषेक के बाद बिल्व पत्र माल्यार्पण, शिवलिंग पर चन्दन कुमकुम लगा कर धूप दीप कर्पूर की आरती दी जाती है| फिर सारी रात जाग आकर शिव आराधना होती है|
- अगले दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर चतुर्दशी तिथि के समाप्त होने से पहले व्रत तोड़ कर अन्न ग्रहण किया जाता है|
Shivratri Puja के मुहूर्त
- रात्रि प्रथम प्रहर – 18:13 से 21:23
- रात्रि द्वितीय प्रहर – 21:23 से 00:33
- रात्रि तृतीय प्रहर – 00:33 से 03:44
- रात्रि चतुर्थ प्रहर – 03:44 से 06:54
- महाशिवरात्रि पारणा (व्रत तोड़ने का) मुहूर्त – 06:54 से 15:24 (25 फरवरी)
ये तो हुआ Shivratri Puja व्रत का तरीका| व्रत सिर्फ उन्हें ही रखना चाहिए जिन्हें किसी तरह का health problems नहीं है या पहले व्रत रख कर practice है| किसी भी प्रकार के health problems वाले या जो निराहार नहीं रह सकते उन्हें व्रत बिलकुल नहीं रखना चाहिए|
Shivratri Puja में अति सरल भस्म लेपन व्रत
अब जो किसी कारण व्रत नहीं रख सकते या पूरी रात्रि जाग कर पूजा अर्चना नहीं कर सकते, वो क्या करें? इस वर्ष महाशिवरात्रि समाप्ति शनिवार है, जो की ज्यादातर सबके लिए working day है| इसलिए पूरी रात्रि जग कर व्रत रखना भी इतना सरल नहीं होगा|
तो आइये आज आपको Maha Shivratri Puja की एक बहुत ही सरल पर अत्यधिक प्रभावशाली शिव पूजा व्रत – भस्माभिलेपन – का तरीका बताते हैं| इस दिन की अद्भुत उर्जा पूरे वर्ष में इसी दिन available है, तो इसे व्यर्थ ना करें| कहा जाता है की 364 दिन के ध्यान से जो अध्यात्मिक शक्ति (spiritual energy) प्राप्त होती है उससे ज्यादा energy इस एक दिन के ध्यान से मिल सकती है|
तो कैसे करें ये सरल Shivratri Puja व्रत?
- महाशिवरात्रि के दिन हल्का भोजन लें जिससे रात्रि में नींद जल्दी नहीं आये| शाम को स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र में किसी भी प्रहर में अपने घर के मंदिर में शिव पूजा करें| जो भी शिव अर्चना, स्तुति या स्तोत्र आपके पास हैं, उसका पारण करें|
- यदि अपने शिवलिंग रखा है तो उस पर जल से, दूध से या उपरोक्त किसी और द्रव्यों से अभिषेक करें, पुष्प चढ़ाएं| अंत में फिर शुद्ध जल से अभिषेक करें और शिवलिंग पर भस्म का लेपन करें| यदि शिवलिंग नहीं है तो जो भी शिव विग्रह आपके पास है उसीसे पूजा करें| पूजा सामग्री की दुकानों में भस्म का पैकेट मिल जाता है|
- इसके बाद बिल्व पत्र, बिल्व फल या धतूरा, आदि चढ़ाएं| फिर धूप दीप से आरती करें, और निम्न तरीके से भस्म लेपन करें|
Shivratri Puja me भस्मलेपन का महत्व
शिव अष्टोत्तर नाम में महादेव का एक रूप है “भस्मोधूलिता विग्रहाय नमः” जिसका मतलब है भस्म में लिप्त विग्रह| महादेव शिव को भस्म लेपन अति प्रिय है| पवित्र भस्म को विधिवत अपने शरीर पर लगाना अति उत्तम महेश्वर व्रत है| शरीर के समस्त रोग निवारण के लिये, positive energy के लिये, मन बुद्धि के विकास और प्रकाश के लिये विधिवत भस्म धारण अति सहायक है और शिव को प्रिय है|
जो भक्त India से बाहर हैं या जिन्हें भस्म नहीं मिल पाता, परेशान ना हों, उनके लिए बताता हूँ| शाम की पूजा के समय पांच अगरबत्ती या पांच धूप स्टिक जला कर किसी कटोरी या प्लेट में अपने पूजा स्थल पर रखें| जब ये पूरी तरह जल जाये और इसकी राख ठंडी हो जाये तो इसे इस्तेमाल करें|
पांच ही क्यों, समझिये| समस्त सृष्टि पांच तत्वों का सम्मिश्रण है| जब आप अगरबत्ती या धूप जला कर देव अर्पण करते है तो अग्नि तत्व वायु तत्व के साथ आकाश तत्व में देव विलीन हो जाता है| भस्म पृथ्वी तत्व के रूप में और जल तत्व गंगा जल या शुद्ध जल के साथ आपके शरीर पर लेपन हो जाता है और इस तरह पञ्च तत्वों से आपकी देव आराधना पूर्ण होती है|
भस्म लेपन व्रत के लिए भस्म को उलटे हाथ की हथेली पर रखें, फिर सीधे हाथ से ढक कर 9 बार पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें| अब थोड़े गंगा जल या शुद्ध जल से भस्म को थोडा गीला कर लें| अब तर्ज़नी उँगली, मध्यमा और अनामिका finger (त्रिपुंड) से भस्म को लगाना है|
शरीर के विभिन्न अंगों पर भस्म लगाते वक्त उन उन देवों के specific मन्त्र बोलते हुए भस्म लगाना है| नीचे सिलसिलेवार शरीर के अंग, उनके देव और लगाने के मन्त्र का details दिया गया है|
चरणों में लगाते समय टखना कलाई की तरह, घुटने कोहनी (मध्य) की तरह और पैर हथेली की तरह लगायें|
इस भस्मलेपन के बाद शिव पंचाक्षरी का जितना जाप कर सकें, करें| Alternatively आप शिव अष्टोत्तर का एक जाप भी कर सकते हैं|
शिव अष्टोत्तर महादेव के दिव्य 108 नाम का जाप है जिसका लिंक नीचे दिया गया है| मैंने इस 108 दिव्य नाम के आगे उनका मतलब भी दिया है क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है की जब आप किसी चीज को समझ कर करते हैं तो आप उस क्रिया या पूजा से जुड़ कर उसे सम्पूर्ण रूप से करते है|
ऊपर दिया गया भस्मलेपन और शिव अष्टोत्तर का download लिंक नीचे दिया गया है, जिसे आप download कर सकते हैं|
Shiva Ashtottaram शिव अष्टोत्तरम
Bhasm lepan Vrat mantra भस्म लेपन व्रत मन्त्र
तो आइये इस सरल प्रभावशाली पूजा पद्धति से शिव आराधना और शिव ध्यान कर अपने जीवन को सफल और सम्पूर्ण बनायें| जय महादेव|
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