Navagraha Saturn – शनि ग्रह कालपुरुष कुंडली या नैसर्गिक कुंडली के दशम एवं एकादश भाव के स्वामी हैं| शनि को ज्योतिष में कर्माधिपति के नाम से भी जाना जाता है| दशम भाव कर्म का भाव है, जीवन में हम कर्म दशम भाव से ही करते हैं, और एकादश भाव लाभ का या यूँ कहें कर्मों के फल का भाव| शनि क्रूर ग्रहों में क्रूरतम ग्रह माने गए है| ये दुःख, संताप के कारक हैं जो पूरी क्रूरता के साथ कस कर काम कराने वाले कठिन Taskmaster हैं|
तो दोस्तों, ये बात कुछ जमती नहीं की इतने क्रूर भयावह ग्रह को कर्माधिपति और लाभेश क्यों माना गया है? देखिये, कर्म करने के लिये ही हमारा जन्म हुआ है, कर्म जीवन है, अकर्मण्य मृत्यु| कर्म करेंगे तभी फल मिलेगा और शनि ही हमें हमारे कर्मों के अनुसार फल देते हैं| अगर Taskmaster ढीला पड़ जाये तो उसकी फाॅर्स भी ढीली पड़ जाएगी| शनि ग्रह की क्रूरता हमें जीवन के सारे पाठ पढ़ाती है| इन्हें दुष्टों में दुष्ट ग्रह की उपाधि तो मिली है किन्तु इनकी कृपा के बिना कुछ प्राप्त भी नहीं किया जा सकता|
जब हम ग्रहों की बात करते हैं तो ज्योतिष में हर ग्रह का अपना:
- कारकत्व है (पिता, माता, भात्र आदि)
- लिंग है (स्त्री, पुरुष, नपुंसक)
- प्रकृति है (राजसिक, सात्विक, तामसिक)
- स्वभाव है (उग्र, सौम्य आदि)
- जाती है (ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि)
- दिशा है (पूर्व, पश्चिम आदि)
- मानव शरीर के विभिन्न अंगों का स्वामित्व है|
शनि (Navagraha Saturn) किन चीजों के कारक हैं?
- आयु (Longevity)
- मृत्यु
- आपदा एवं विपत्ति
- वृद्धावस्था
- व्याधि
- दरिद्रता
- अभाव
- पाप
- भय
- काराग्रह
- सेवा भाव (Servitude)
- विज्ञान
- नियम
- तेल (किसी भी तरह की गहराई से निकलने वाला)
- धरती के अन्दर के खनिज
- श्रमजीवी, मजदूर, मिस्त्री, बढई
- नौकर, ताबेदार
- गुलामी
- कृषि, तिल, काली उड़द, और समस्त काले उत्पाद
- कुर्बानी
- उंचाई से गिरना
- तिरस्कार
- निवास के लिए विदेश यात्रा
- क़र्ज़
- कठिन परिश्रम
- विकलांगता
- संन्यास, सन्यासी, त्यागी, वैरागी, एकांतवासी
- लकड़ी, कोयला, लोहा, स्टील
शनि बहुत महत्वपूर्ण ग्रह हैं जो कुंडली पर गहरा आध्यात्मिक प्रभाव डालते हैं| ये उन सबके प्रतीक हैं जो अथाह है, गहरा है, परिपूर्ण है, शाश्वत है, दीर्घकालीन तथा जो भी जीवन में गंभीर है| ये जीवन के उन सब पहलुओं से सम्बंधित हैं जो हमें धीरता गंभीरता सिखाती है, गूढ़ सोच देती है और परिपूर्ण बनाती है|
प्रतिकूल या पीड़ित शनि जीवन में क्या परेशानियां दे सकता है?
ग्रह पीड़ित, प्रतिकूल या कमजोर तब होते हैं जब वो नीच के हो कर कुंडली में स्थित हों, या दुश्स्थान में बैठे हों या दुश्स्थान का स्वामित्व हो, सूर्य की निकटतम डिग्री में होकर अस्त हों, ग्रहण की स्थिति में हों, planetary war में हारे हुए हों या पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हों|
यहाँ शनि के लिए एक exception है – ये तीसरे, छठे और ग्याहरवें भाव में स्थित हों तो अच्छे माने जाते हैं क्यूंकि इन दुश्स्थानों में यदि दुष्ट ग्रह बैठें तो अच्छे फल देते हैं| मगर इन भावों का स्थान का स्वामित्व अशुभ है|
- दुःख
- संताप
- देरी व रुकावट
- निराशा
- विफलता
- Disharmony (असंगति)
- विवाद, अवसाद, विषाद
- Accident
- अपमान, अवमान
- काराग्रह गमन
- नशीले पदार्थों (Drugs) का आदी
- चोरी तथा चोरी का भय
- मुक़दमा एवं अभियोग
- असामयिक वृद्धावस्था
जबकि अनुकूल शनि (Navagraha Saturn) जो शुभ भाव में स्थित हों या शुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हों या उच्च स्थिति में हों तो ये जातक को सत्यनिष्ठा, ज्ञान, अध्यात्म, नाम यश, सब्र, leadership, दीर्घायु, अधिकार (Authority), इमानदारी, सच्चरित्रता, न्यायप्रियता, वैराग्य और संन्यास आदि देते हैं|
शनि (Navagraha Saturn) को मन्द एवं शनैश्चर (धीमि गति वाला) के नाम से भी जाना जाता है क्यूंकि समस्त ग्रहों में ये सबसे धीमी गतिवान हैं जो निरायन राशिमंडल (sidereal zodiac) के एक एक राशि को तकरीबन ढाई साल में पार करते हैं|
शनि (Navagraha Saturn) के मित्रों में बुध एवं शुक्र आते हैं| सूर्य, चन्द्र और मंगल इनके शत्रु तथा ब्रहस्पति से ये समभाव (neutral) रखते हैं| कालपुरुष राशीचक्र के दशमेश एवं एकादशेश होकर मकर राशी एवं कुम्भ राशि के स्वामी हैं | कुम्भ राशि 1-20 डिग्री इनकी मूलत्रिकोण राशि है| मूलत्रिकोण राशी में ग्रह बहुत अधिक शुभ हो जाते हैं इसीलिए मूलत्रिकोण में ग्रह को देखने का महत्व है|
मकर राशी की और जानकारी यहाँ है|
कुम्भ राशी की और जानकारी यहाँ है|
शनि (Navagraha Saturn) तुला राशि में 20 डिग्री में उच्च के (Exalted) एवं मेष राशि 20 डिग्री में ये नीच के (Debilitated) होते हैं| उच्च स्थिति में ग्रह सबसे बलवान और नीच स्थिति में बलहीन माने जाते हैं इसीलिए इन अवस्थाओं को देखने का भी बड़ा महत्व है|
तुला राशी की और जानकारी यहाँ है|
मेष राशी की और जानकारी यहाँ है|
शनि (Navagraha Saturn) तामसिक प्रकृति के, स्त्री नपुंसक राशि, वायु तत्व राशी, शूद्र जाति के, पश्चिम दिशा के हैं और और इनके अधिदेव अय्यप्पन हैं| शनि युक्तिवादी, दार्शनिक, त्यागी, विध्वंसकारी force, नपुंसक, बंजर, ठन्डे और बर्फीले ग्रह हैं| शारीरिक रूप से शनि नाखून, बाल, दांत, हड्डी, नर्वस सिस्टम को rule करते हैं|
शनि दीर्घ, दुबले कमजोर शरीर के, गहरा सांवला वर्ण, अकड़े बाल एवं अंग, बड़े दांत, आलसी, क्रूर प्रकृति, कठिन श्रमिक, पंगु एवं मैले कुचेले पोशाकधारी हैं| इस वर्णन का मतलब ये नहीं की Navagraha Saturn से प्रभावित जातक ऐसे ही होंगे, overall ऐसी personality होगी तथा साथ ही लग्न, लग्न में बैठे या लग्न को दृष्टि देने वाले ग्रह, लग्न का नक्षत्र आदि अन्य चीजें मिलकर ही पूरी personality तय करती है|