Navagraha Rahu – राहू को ज्योतिष में एक अनिष्टकारी और अशुभ ग्रह माना गया है| शास्त्रों में राहू को “शनिवत राहू” कहा गया है जिसका मतलब है राहू शनि की तरह असर करने वाला ग्रह है और शनि खुद एक अनिष्टकर ग्रह माना गया है| राहू जिस भाव में स्थित होता है या जिस ग्रह के साथ युत होता है उसकी शक्ति क्षीण कर देता है| राहू को ज्योतिष में छाया ग्रह या अप्रकाशित ग्रह कहा गया है जिनका अपना कोई पिंड स्वरुप नहीं है जैसे बाकी समस्त ग्रहों का है|
वास्तव में राहू और केतु हैं क्या ? हर कुंडली में राहू और केतु की उपस्थिति रहती है क्यूंकि ज्योतिष के नवग्रह में ये दो छाया ग्रह हैं तो हर कुंडली में इनकी उपस्थिति अनिवार्य है| राहू और केतु को छाया ग्रह इसलिए कहा गया है की वास्तव में ये खगोलीय पिंड रूप में न होकर चंद्रमा के गणितीय परिकलित (mathematically calculated) संवेदनशील बिंदु हैं| खगोलीय दृष्टि से चंद्रमा अपने ग्रहपथ पर पृथ्वी की प्रदक्षिणा में सूर्य के पथ को (ecliptic) को उत्तर और दक्षिण में १८० डिग्री पर काटता है तो इन बिन्दुओं हो राहू और केतु कहा गया है| नीचे दिए diagram में इसे अच्छी तरह समझ सकते हैं|
राहू (Navagraha Rahu) किन चीजों का कारक है?
- शोध research
- कटु कर्कश वाक्
- विदेश में जीवन
- लघु व दीर्घ यात्रा
- कामना और मांग
- चर्म पर स्पॉट
- सरीसृप, सर्प और इसका दंश
- संक्रामक रोग
- अनैतिक स्त्री सम्बन्ध
- मातृ एवं पितृ पितामह
- मिथ्या वाद विवाद, अफसोसजनक संवाद
- असत्यता
- वैधव्य
- दर्द और सूजन
- डूबना
- अँधेरा
- नीच जाति
- धूर्त स्त्री
- जुआरी
- कपट एवं नीचता, back biter, ढोंगी, बुरी आदतें,
- बीमार स्त्री गमन
- अंगच्छेद
- कोढ़
आधुनिक जीवन में अशुभ ग्रह (Navagraha Rahu) राहू क्यों अत्यंत महत्वपूर्ण है?
राहू (Navagraha Rahu) एक असंतुलित और अनियमित force है| ये अच्छे बुरे या धर्म अधर्म की सोच से परे obsessive जूनून देता है इसीलिए राहू great material progress यानि भौतिकतावाद में बहुत जल्दी उन्नति देता है| राहू को ज्योतिष में म्लेच्छ भी माना गया है और विदेशियों को भी पुराने जमानों में इसी नाम से जाना जाता था| आज के युग में यही म्लेच्छ राहू विदेश गमन एवं विदेशों में जीवनयापन के लिए सबसे ज्यादा देखा जाता है| कुंडली में अनुकूल रूप से स्थित राहू (Navagraha Rahu) भौतिक उन्नति, विदेश यात्रा एवं विदेशों में जीवनयापन देने में सक्षम होता है, जो पुराने ज़माने में देश निकाला माना जाता था, और आज जिसके लिए अमूमन हर professional तैयार रहता है!!
कुंडली में उच्च का या अच्छी स्थिति में स्थित राहू (Navagraha Rahu) नाम यश, राजनीति में सफलता, धन, materialistic उन्नति, भोग विलासिता एवं शारीरिक रूप से attraction देता है| अगर यही राहू ब्रहस्पति या शुक्र से द्रष्ट हो तो गुप्त ज्ञान अभिगमन, तंत्र ज्ञान, painting, मुद्रण एवं प्रकाशन आदि का कौशल देता है|
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हालाँकि राहू से प्रभावित ऐसी progress जयादा चलती नहीं| और साधारणतया यह भी देखा गया है की अपनी महादशा में अनुकूल स्थिति का राहू जो कुछ भी भौतिक रूप से देता है, महादशा समाप्त होते होते, वापस भी ले लेता है| छल कपट और नीचता से हर तरह के भ्रमजाल की रचना में माहिर है Navagraha Rahu. ये हमारी बेकाबू इच्छाओं और compulsive आदतों में प्रकटित होता है |
कुंडली में प्रतिकूल राहू का क्या प्रभाव है?
कुंडली में प्रतिकूल राहू (Navagraha Rahu) अत्यधिक भोग विलासिता देकर बुरे कर्म कराता है| ऐसा राहू परेशानियों, आपत्तियों, चिंता और उत्कंठाओं, शत्रुओं का कारण बन तृप्त न होने वाली सांसारिक सुखों और इन्द्रिय विषयक कामनाओं का का भी कारक बन जाता है| ये हमारी तर्क शक्ति का नाश कर हमें विवेकहीन और मंद बुद्धि कर देता है और हमारे हाथ से नियत्रण निकल जाता है|
प्रतिकूल राहू जीवन में कैसी प्रतिकूलता देता है?
राहू (Navagraha Rahu) प्रतिकूल अवस्था में ऐसी शारीरिक और मानसिक कष्ट देता है जो आराम से न तो जाहिर होते और ना ही इन रोगों का इलाज आसानी से होता| अगर ऐसे प्रतिकूल राहू के साथ यदि चन्द्रमा भी पीड़ित हो तो ऐसी अवस्था आत्मघातक (suicidal) सोच दे सकती है| इसके आलावा भय, phobia, सर्पदंश, हत्या, काराग्रह, चोरी, स्वार्थता आदि भी राहू के कार्यक्षेत्र में ही आते हैं| रोगों में ये हैजा, dysentery, गठिया, बवासीर, चर्मरोग, अर्बुद, कब्ज एवं गर्भाशय की सूजन आदि दे सकता है|
ज्योतिष के कुछ शाखाओं के अनुसार, राहू समस्त नवग्रहों में सबसे शक्तिशाली माने गए हैं क्यूंकि सिर्फ एक राहू ही हैं जो महाप्रतापी प्रकाश पुंज सूर्य को भी ग्रहण लगाने की ताकत रखते हैं| नवग्रह स्त्रोतम में राहू (Navagraha Rahu) को “चन्द्र आदित्य विमर्दनम” कहा गया है मतलब जो चन्द्र और आदित्य यानी सूर्य का भी मर्दन कर सकते हैं| राहू और केतु वो अनिष्ट अर्ध ग्रह हैं जो हर कुंडली का द्विविभाजन करते हैं| इनके शुभ या अशुभ फलों की तीव्रता depend करती है की ये किस ग्रह के साथ युति कर रहे हैं या किन ग्रहों से सम्बन्ध बना रहे हैं| हालाँकि राहू महा अनिष्टकर ग्रह हैं पर ये सबसे शुभकर भी हो सकते हैं अगर शुभ केंद्र में हों या उच्च के होकर केंद्र में बैठ जाएँ|
जब भी चन्द्र या सूर्य राहू या केतु के समीप या युत होते हैं तो ग्रहण लगता है| राहू सूर्य ग्रहण का कारण बनता है और केतु चन्द्र ग्रहण का| हालांकि राहू के स्वामित्व में पूर्ण रूप से कोई राशी नहीं आती मगर कन्या राशि को राहू की राशि माना गया है| कन्या हालाँकि बुध की राशि है पर चूंकि राहू को शनीवत कहा गया है और बुध शनि का मित्र है इसीलिए राहू की राशि कन्या राशि मानी गयी है| राहू वृषभ राशि में उच्च के तथा वृश्चिक राशि में नीच के होते हैं हालाँकि ज्योतिष की कुछ शाखाओं में राहू की उच्च राशी मिथुन और नीच राशी धनु भी मानते हैं|
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